जहां तक आदिवासी जनों का सवाल है। दुनिया के तकनीकी विकास में उनकी ऐतिहासिक भूमिका को रिज नहीं किया जा सकता. देश के बड़े-बड़े बुद्धिजीवी समय-समय पर गांध के हिंद स्वराज का हवाला देते हैं. लेकिन पता नहीं क्यों उसे केवल एक ऐसी किताब में बदल देते हैं जिसका पाठ तो किया जाता है लेकिन विकास के तरीके को नहीं बदला जा सकता. यह एक अत्यंत गहरा संवाद है कि प्रति और मानव | का जीवन ही किसी उन्नति का आधर है. क्या यह बताने की कोशिश की जा सकती है कि | अब तक जिन तरीकों को अपनाकर विकास का रास्ता बनाया गया है उससे सामाजिक अंतर्विरोध और ज्यादा गहन और असमानता | ही क्यों उत्पन्न हुए हैं. इस सवाल को रिज | कर आगे का रास्ता शायद ना निकल पाएगा.