सूर्य कुमार के नाम में यादव जुड़ा है, इसलिए उन्हें बिठाते हैं, ऐसा भी नहीं है। कुलदीप के नाम में भी तो यादव जुड़ा है, वो भी हर मैच खेल रहे हैं।

यह पेशेवर खेल है, यूपी-बिहार का चुनाव नहीं जिसमें एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के आधार पर उम्मीदवारों को चुना जावे या न चुना जावे।

माजरा यह है कि एक दिवसीय क्रिकेट में टीम-संतुलन पर बड़ा ज़ोर रहता है। बैटिंग ऑलराउंडर और बॉलिंग ऑलराउंडर को तरजीह दी जाती है। बल्लेबाज़ जो कुछ अच्छे ओवर फेंक सकें और गेंदबाज़ जो तीसेक रन बना सकें। इसी कारण अतीत में रोबिन सिंह हर एकदिवसीय मैच खेलते थे, अब हार्दिक पांड्या खेलते हैं। इसी कारण अतीत में राहुल द्रविड़ विकेटकीपिंग करते थे, अब केएल राहुल कर रहे हैं। सोचा होगा चयनकर्ताओं ने कि शार्दूल ठाकुर अच्छी बल्लेबाज़ी कर लेते हैं, ज़रूरत पड़ने पर काम आएँगे…

पर क्रिकेट की शास्त्रीय एप्रोच तब भी यही कहती है कि अपने बढ़िया से बढ़िया बल्लेबाज़ और बढ़िया से बढ़िया गेंदबाज़ को मैदान में उतारो, फिर भी न जीते तो दुर्भाग्य मान लो। इसीलिए, इस गेम के बाद मोहम्मद शमी को बिठाना अब मुश्किल होगा।

वे गति से गेंद फेंकते हैं और उसे लेंग्थ पर नहीं पटकते। स्मूद रनअप और हाई आर्म एक्शन है। मज़बूत भुजाएँ और कलाइयाँ- जिससे उम्दा यॉर्कर फेंक पाते हैं। यह बल्लेबाज़ के पैरों के नीचे धान बो आने का हुनर है। अतीत में इसके महारथी हर टीम में होते थे- वर्तमान में भारत के पास दो हैं- और दोनों का एक्शन एक-दूसरे से फ़र्क़। जसप्रीत बुमराह का रनअप शमी की तुलना में स्टिफ़ है, स्मूद नहीं है, पर हाई आर्म से सटीक यॉर्कर का टप्पा फेंकते हैं।

कहावत है कि एक पैसा बचाया यानी एक पैसा कमाया। भारतीय टीम ने इस विश्वकप में इस कहावत का पालन किया है। कम रन दो तो कम रन चेस करना पड़ेंगे। आज भी कमसकम पचास रन बचाए, किवी लोगों को पौने तीन सौ पर रोक दिया। आसान ही चेस था। कहानी में थोड़े ट्विस्ट तो आते ही हैं, सो आए। रोहित शर्मा स्वर्णिम लय में थे। विरोट कोहली स्वप्न की तरह सुंदर आज भी खेले। चेसमास्टर हैं। रनों का पीछा करते समय उनके दिमाग़ के सुपर-कम्प्यूटर में तमाम ब्योरे फ़ीड हो जाते हैं कि कब, कैसे, क्या करना है।

पिछले मैच में कोहली पर इलज़ाम लगा कि सैकड़े के फेर में कई गेंदें खा गए, इसलिए आज थोड़ी जल्दबाज़ी कर बैठे। पर तब तक गेम हाथ में आ चुका था। यह विश्वकप राउंड रोबिन लीग फ़ॉर्मेट में खेला जा रहा है। हर टीम एक-दूसरे से खेलती है और शीर्ष चार अगले दौर में जाती हैं। यही फ़ॉर्मेट 1992 में भी था और तब मार्क ग्रेटबेच-मार्टिन क्रो-दीपक पटेल की न्यूज़ीलैंड तक़रीबन सभी मैच जीतकर टॉप पर थी। पर सेमीफ़ाइनल हार गई। ख़ुदा न करे इस बार इंडिया के साथ ऐसा हो।

मैच के बाद प्रेसवार्ता में मोहम्मद शमी ने कहा कि कंट्री के लिए परफ़ॉर्म करना अच्छा लगता है। कंट्री को भी इस मेहनती गोलंबाज़ को ज़रूरी इज़्ज़त अब देनी चाहिए। एक अरसे से बढ़िया गेंदें फेंकते आ रहे हैं!

सुशोभित

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