Post navigation माउथ कैंसर की रोकथाम के लिए वर्चुअल मोड में प्रशिक्षण शुरू डीएसपीएमयू कुड़मालि विभाग के छात्र-छात्राओं का दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण संपन्नशनिवार-रबिवार 27-28 जुलाई 2024 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) रांची पीजी तथा यूजी अंतिम वर्ष के छात्रों ने दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण प. बंगाल के पूरूलिया जिला के ऐतिहासिक पंचकोट महाराजा के झालदा, केसरगढ़, कांसीपुर एवं गड़पंचकोट स्थित राजमहल एवं किला का भ्रमण किया। भ्रमण की शुरूआत पंचकोट महाराजा के द्वितीय राजधानी झालदा से शुरूआत की गई। झालदा में स्थित महाराजा के राजदरबार का सभी छात्रों ने गहन अध्ययन किया, जो कि लगभग 1500 वर्ष पुराना माना जाता है।यहां से सभी छात्र-छात्राएं इसके केसरगढ़ स्थित राजधानी गये। वहां कई राजघराना के किलों के अवशेष का निरीक्षण किया, जो कि काफी विध्वंश स्थिति में देखने को मिला। इसके बावजूद यहां पर रानी बांध, इसके समाधि स्थल जहां पर पूजा-अर्चना अब भी होता है। राजा के शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्र होने के बात स्थानीय लोगों ने होने एवं 10 से अधिक बांध का नाम बतलाया, जिसमें ज्यादातर एक सीध में देखने को मिला।यहां से विद्यार्थी पंचकोट महाराजा के कांसीपुर स्थित राजधानी में स्थित राजबाड़ी का भ्रमण किया। इसके किला काफी अच्छी स्थिति में देखा गया। इस किला के एक भाग में इसके वंशज के एक सदस्य अभी निवास करते हैं। इसके किला के सबसे उपरी छोर में दिशा इंगित करने वाला है। जो कि धातु से बना हुआ है। मुख्य किला के आस-पास कई किला स्थित है जो कि ऊंची चारदिवारी में घिरी हुई है।यहां से विद्यार्थी पंचेत डेम के उस पार वेली पब्लिक स्कूल में रात्रि विश्राम किया। शैक्षणिक भ्रमण के दूसरे दिन 28 जुलाई को पंचेत डेम का भ्रमण किया। यह झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के सीमा पर दामोदर नदी पर बना है। डेम के विशालकाय दृश्य देखकर सभी विद्यार्थी दंग रह गये और डेम में सेल्पी लेकर इसको अपने मोबाईल में कैद कर लिये।फिर दोपहर तक पंचकोट महाराजा के तीसरा स्थातंरित राजधानी गड़पंचकोट गया जो कि पंचेत पहाड़ एवं इसके किनारे स्थित है। कहा जाता है कि यहां पांच चरणों में कोट स्थापित होने के कारण इसको पंचकोट कहा जाता है। यह पांचों चरण पहाड़ के ऊंचाई के अनुसार विभक्त किया गया है। इसका अवशेष आज भी है। इसका निरीक्षण छात्रों ने पहाड़ चढ़कर किया। यहां पांच कोटों का गढ़ रहने के इस कारण इस पाहाड़ का नामकरण पंचकोट पहाड़ पड़ा है एवं इस पूरे क्षेत्र को ‘गड़ पंचकोट’ नाम दिया गया।यहां पर कुड़मालि भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं समाज से जुड़े कई साक्ष्य शिल्प कला के रूप में प्राप्त हुआ। जैसे दासांइ पर्व में होने वाले ‘कोहड़ा’ पूजा का प्रतीक, नटुवा नृत्य में प्रयोग होने वाला ‘फरि’, जिलहुड़ का चिन्ह, गुप्त दिरखा (कनगा), बुढ़ा बाबा का स्थल आदि। इसके अलावे पूर्व द्वार, झरना, सैनिक के गुप्त स्थल, जोड़ा हाथी, राजहंस, महाबीर जैसा पत्थर का बना मूर्ति, राजकीय प्रतीक चिन्ह, सबसे शीर्ष स्थल पर महाराजा, मंत्री, सेनापति आदि के बैठने का सभा स्थल, सजा हेतु ढलान पत्थर आदि प्रमुख है। यहां राजमहल के शुरूआत में स्थित एक आदि माइथान का निरीक्षण किया, जिसका आधा से ज्यादा अंश विध्वंश हो चुका था। इसका स्थलीय क्षेत्र लगभग 1.5 किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। उपर्युक्त इन सभी जगहों पर सबों ने किला एवं अवशेषों के सामने सामूहिक फोटो खिंचवाया और रात्रि में वापस विश्वविद्यालय परिसर रांची पहुंचे।इस शैक्षणिक भ्रमण में यूजी और पीजी के कुल मिलाकर 54 छात्र-छात्राएं शामिल हुए। इनके साथ में कुड़मालि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परमेश्वरी प्रसाद महतो, सहायक प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो एवं पीएच. डी. शोधार्थी अशोक कुमार पुराण थे।ऐतिहासिक विश्लेषण के अनुसार पंचकोट राज्य के प्रथम राजधानी इस राढ़ भूमि स्थित गड़़ जयपुर (पुरूलिया) था जो कि 52 ई मानी जाती है। यहां पर कई सौ वर्ष राजधानी रहा फिर बाद में यहां से विस्तारित करते हुए झालदा मंे नया राजधानी स्थापित किया। यहां पर काफी लंबे वर्षाें तक राजधानी रहा और लगभग 900-1000 के आसपास यहां से अपनी राजधानी पूर्व की ओर ‘गड़पंचकोट’ में स्थापित किया। गड़पंचकोट में इसका राजधानी लगभग 350 वर्षों तक रहा फिर वहां से मुगलों एवं मराठों के आक्रमण के बाद लगभग 1300 ई. के आसपास यहां से राजधानी केसरगढ़ में स्थापित किया। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर बहुत लंबे वषों तक राजधानी रहा लगभग 450-500 वर्ष तक। फिर यहां से 1750 के बाद इसकी राजधानी कांसीपुर में स्थापित किया, जो अंग्रेज एवं स्वतंत्रता काल तक रहा। इन जगहों से राजधानी स्थांतरण के बावजूद इसके वंशज के कुछ लोग वहीं रहने लगे। जिसका प्रमाण अभी भी झालदा राजघराना है।पंचकोट महाराजा के अधिन कई क्षेत्र के राजा थे जिसमें झरिया, कतरास, झालदा, चंदनकियारी आदि प्रमुख है।