रांची विवि के जनजतीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के वरीय प्राध्यापक सह समन्वयक डॉ हरि उरांव को आज विदाई दी गई। श्री हरि उरांव 31 मार्च 2024 को सेवानिवृत हो रहे हैं, 31 मार्च को रविवार है, रविवारीय अवकाश के कारण आज 30 मार्च को जनजातीय भाषा संकाय के सभी विभागाध्यक्षों, शिक्षकों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों द्वारा विदाई सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। उनके द्वारा किए गए कार्य जिससे जनजतीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय आज फल फूल रहा है। इसमें श्री उरांव का अविस्मरणीय व ऐतिहासिक योगदान है, उसे कभी नही भुलाया नहीं जा सकता। इन्होंने 9 भाषा के विकास के लिए अपनी भूमिका को हमेशा कठिन संघर्ष पूर्ण जीवन को झेला है। इस अवसर पर डॉ हरि उराँव ने कहा कि सभी भाषा के शोधार्थी और शिक्षक एक दूसरे साथ देते हुए भाषा साहित्य को मजबूत करे, नही तो कभी भी बाहरी मानसिकता वाली सरकार / सरकारी पदाधिकारी गलत निर्णय कर के इसे बर्बाद कर सकते है। स्थानीय भाषाओं के विकास हम सबका विकास है, इसी मूलमंत्र को ध्यान में रखते हुए झारखण्ड के प्रत्येक नागरिक को काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज इस विभाग का परचम लहरा रहा है इसके पीछे उच्च सोच, कड़ी संघर्ष और आपसी एकता के साथ कार्य करने की प्रवृत्ति है। उन्होंने कहा कि यदि अभी सभी विभाग के शोधार्थी और शिक्षक एक नही रहोगे तो आप लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
यह विभाग बहुत ही खास है। झारखंड की जनमानस जो गरीब होते हुए भी बहुत कम खर्च और अधिक मेहनत की बदौलत पीएचडी की डिग्री तक पहुंच पाते हैं तथा बहुत बड़ा ओहदा हासिल करते हैं। आज तक इस विभाग से निकले विद्यार्थियों ने 3000 से अधिक स्कूलों के शिक्षक दो सौ से अधिक अनुबंध और नियमित सहायक प्राध्यापक इसके अलावा प्रशानिक अधिकारी और राजनेता को विभाग ने पैदा किया है। इस विभाग के सहयोग से ही झारखंड की साहित्य को बचाया जा सकता है। यदि यंहा के झाखण्ड विकास की सोच रखने वाले विधायक, सांसद और सरकार के सहयोग से ही हो सकता है।
विदित हो कि श्री उरांव जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के प्रथम बैच के विद्यार्थी और झारखंड आंदोलनकारी भी रह चुके हैं।