कोई भी मनुष्य पूर्ण नहीं होता है। हर इंसान में कुछ न कुछ कमी होती है तो कुछ गुण विशेष भी होते हैं। आवश्यकता इस बात है कि उन गुणो को पहचानकर उसका समुचित उपयोग कर पाने की । जिस तरह से एक छोटे से बीज में एक बडा वृक्ष बनने की क्षमता सुषुप्त रुप में होती है और उसे यदि उपयुक्त परिस्थिति,वातावरण और पोषण मिलता है तो वह अपने असली रुप में विकसित होने लगता है। ठीक उसी तरह हर मनुष्य के अन्दर संभावनाएं उपलब्ध रहती है लेकिन उपयुक्त परिस्थिति,वातावरण पोषण न मिल पाने के कारण मनुष्य स्वयं के अन्दर निहित क्षमताओं को उजागर नहीं कर पाता हे। यदि वह इन क्षमताओ का उपयोग करना सीख ले तो स्वयं के अन्दर निहित असीमित क्षमताओं से परिचित हो सकता है।

अक्सर हम कहते है फलां व्यक्ति में कई तरह की बुराईयॉ है। वह अच्छा इंसान नहीं है। इन सब बातो को कहकर हम उस व्यक्ति के अन्दर की अच्छाईयो को भी खत्म कर देते है। कोई भी इंसान बुरा नहीं होता है।उसकी आदतें बुरी होेती है। हमें उस इंसान से नफरत नहीं बल्कि उसकी बुराईयो से नफरत करनी चाहिए। मनुष्य अपनी क्षमताओ का शत प्रतिशत उपयोग नहीं करता है। यदि आत्म निर्माण में जुटा जा सके,बुरी आदतो को कूडे करकट की तरह समेटकर बसहर फेंका जा सके, दृष्टिकोण में मानवीय परिवर्तन गरिमा के अनुरुप मान्यताएं आ सके, तो हर असंभव कही जाने वाली चीज संभव हैे।

सफलता हासिल करने के लिए दूसरो की मनुहार की जरुरत नहीं। यदि व्यक्ति अपनी समझ को तेज करता चले, क्रमशः अधिक बडी जिम्मेदारियां उठाता चलें,तो समझना चाहिए कि इसी विकसित प्रबंध शक्ति के बल पर वह जहॉं भी रहेगा सरताज बनकर रहेगा। यह आत्मशक्ति उसे साधारण से आसाधारण व्यक्ति बनाती है।

सच कहे तो हमें खुद पर ही विश्वास नहीं  होता सफलता या असफलता से धबराए नहीं, कठिन कार्यो को करने मे हिचकिचाए नहीं ,जो दुविधा में रहते हैं वे कभी आगे नहीं बढ पाते है। हम अपनी कीमत समझ ही नहीं पाते और सदैव खुद में ही कमियॉं ढुढते एवं देखते रहते है। पर  हम यह नहीं देख पाते कि इन कमियों के बावजूद हमारे अन्दर क्या खूबी है। उदाहरण के तौर पर हम सडक के किनारे अच्छे खासे स्वस्थ आदमी को भीख माँगते हुए देखते है। इसी सदंर्भ में मै बार ट्रेन से कटक जा रही थी । सामने की सीट पर एक सज्जन व्यक्ति बैठे हुए थें, तभी स्टेशन पर एक व्यक्ति चढा जो नौजवान था और भीख मॉग रहा था। उस सज्ज्न व्यक्ति ने उससे कहा कि भाई तुम हर तरफ से स्वस्थ हो फिर भीख क्यों मॉग रहे हो,उस नौजवान ने कहा कि मै बेकारी और गरीबी से तंग आ गया हूॅं तो उस सज्जन व्यक्ति ने कहा कि तुम अपना एक हाथ और एक पैर मुझे दे दो बदले में मै तुम्हें एक लाख रुपया दूॅगा,नौजवान बोला मै क्यो दूॅं,कोई भला अपना अंग कैसे दे सकता है। इस पर सज्ज्न व्यक्ति ने हॅसते हुए कहा जब ईश्वर ने तुम्हे इतनी बेशकीमती चीज दी है तो तुम गरीब कैसे हुए। क्या तुम्हें यह कहना शोभा देता है कि मेरे पास कुछ भी नहीं हें जाओ मेहनत मजदूरी करो,भीख मॉगना छोडो।

हमारे देश और समाज की यही दुर्भाग्य है कि ना हम अपनी और ना ही इस शरीर की कीमत को समझ पाते है। इस शरीर से भी मूल्यवान जीवात्मा है है जो सदैव हमारे साथ रहती है जो कि परमात्मा का अंश हैं और जिसकी अभिव्यक्ति के लिए अमूल्य मानव शरीर हमें परमात्मा से उपहार में मिला है। इसीलिए जितना संभव हो सके, हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए। अपने अंदर की क्षमताओ का उपयोग करना चाहिए और चुनौतियो को स्वीकार करना चाहिए तभी हम अपनी शक्तियो व क्षमताओं से परिचित हो सकेगें ।

                                                मयूरी गुप्ता

  मोटिवेटर एवं कंटेंट राइटर

                                              रांची, झारखण्ड





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