Latest Post

डीएसपीएमयू कुड़मालि विभाग के छात्र-छात्राओं का दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण संपन्नशनिवार-रबिवार 27-28 जुलाई 2024 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) रांची पीजी तथा यूजी अंतिम वर्ष के छात्रों ने दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण प. बंगाल के पूरूलिया जिला के ऐतिहासिक पंचकोट महाराजा के झालदा, केसरगढ़, कांसीपुर एवं गड़पंचकोट स्थित राजमहल एवं किला का भ्रमण किया। भ्रमण की शुरूआत पंचकोट महाराजा के द्वितीय राजधानी झालदा से शुरूआत की गई। झालदा में स्थित महाराजा के राजदरबार का सभी छात्रों ने गहन अध्ययन किया, जो कि लगभग 1500 वर्ष पुराना माना जाता है।यहां से सभी छात्र-छात्राएं इसके केसरगढ़ स्थित राजधानी गये। वहां कई राजघराना के किलों के अवशेष का निरीक्षण किया, जो कि काफी विध्वंश स्थिति में देखने को मिला। इसके बावजूद यहां पर रानी बांध, इसके समाधि स्थल जहां पर पूजा-अर्चना अब भी होता है। राजा के शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्र होने के बात स्थानीय लोगों ने होने एवं 10 से अधिक बांध का नाम बतलाया, जिसमें ज्यादातर एक सीध में देखने को मिला।यहां से विद्यार्थी पंचकोट महाराजा के कांसीपुर स्थित राजधानी में स्थित राजबाड़ी का भ्रमण किया। इसके किला काफी अच्छी स्थिति में देखा गया। इस किला के एक भाग में इसके वंशज के एक सदस्य अभी निवास करते हैं। इसके किला के सबसे उपरी छोर में दिशा इंगित करने वाला है। जो कि धातु से बना हुआ है। मुख्य किला के आस-पास कई किला स्थित है जो कि ऊंची चारदिवारी में घिरी हुई है।यहां से विद्यार्थी पंचेत डेम के उस पार वेली पब्लिक स्कूल में रात्रि विश्राम किया। शैक्षणिक भ्रमण के दूसरे दिन 28 जुलाई को पंचेत डेम का भ्रमण किया। यह झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के सीमा पर दामोदर नदी पर बना है। डेम के विशालकाय दृश्य देखकर सभी विद्यार्थी दंग रह गये और डेम में सेल्पी लेकर इसको अपने मोबाईल में कैद कर लिये।फिर दोपहर तक पंचकोट महाराजा के तीसरा स्थातंरित राजधानी गड़पंचकोट गया जो कि पंचेत पहाड़ एवं इसके किनारे स्थित है। कहा जाता है कि यहां पांच चरणों में कोट स्थापित होने के कारण इसको पंचकोट कहा जाता है। यह पांचों चरण पहाड़ के ऊंचाई के अनुसार विभक्त किया गया है। इसका अवशेष आज भी है। इसका निरीक्षण छात्रों ने पहाड़ चढ़कर किया। यहां पांच कोटों का गढ़ रहने के इस कारण इस पाहाड़ का नामकरण पंचकोट पहाड़ पड़ा है एवं इस पूरे क्षेत्र को ‘गड़ पंचकोट’ नाम दिया गया।यहां पर कुड़मालि भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं समाज से जुड़े कई साक्ष्य शिल्प कला के रूप में प्राप्त हुआ। जैसे दासांइ पर्व में होने वाले ‘कोहड़ा’ पूजा का प्रतीक, नटुवा नृत्य में प्रयोग होने वाला ‘फरि’, जिलहुड़ का चिन्ह, गुप्त दिरखा (कनगा), बुढ़ा बाबा का स्थल आदि। इसके अलावे पूर्व द्वार, झरना, सैनिक के गुप्त स्थल, जोड़ा हाथी, राजहंस, महाबीर जैसा पत्थर का बना मूर्ति, राजकीय प्रतीक चिन्ह, सबसे शीर्ष स्थल पर महाराजा, मंत्री, सेनापति आदि के बैठने का सभा स्थल, सजा हेतु ढलान पत्थर आदि प्रमुख है। यहां राजमहल के शुरूआत में स्थित एक आदि माइथान का निरीक्षण किया, जिसका आधा से ज्यादा अंश विध्वंश हो चुका था। इसका स्थलीय क्षेत्र लगभग 1.5 किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। उपर्युक्त इन सभी जगहों पर सबों ने किला एवं अवशेषों के सामने सामूहिक फोटो खिंचवाया और रात्रि में वापस विश्वविद्यालय परिसर रांची पहुंचे।इस शैक्षणिक भ्रमण में यूजी और पीजी के कुल मिलाकर 54 छात्र-छात्राएं शामिल हुए। इनके साथ में कुड़मालि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परमेश्वरी प्रसाद महतो, सहायक प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो एवं पीएच. डी. शोधार्थी अशोक कुमार पुराण थे।ऐतिहासिक विश्लेषण के अनुसार पंचकोट राज्य के प्रथम राजधानी इस राढ़ भूमि स्थित गड़़ जयपुर (पुरूलिया) था जो कि 52 ई मानी जाती है। यहां पर कई सौ वर्ष राजधानी रहा फिर बाद में यहां से विस्तारित करते हुए झालदा मंे नया राजधानी स्थापित किया। यहां पर काफी लंबे वर्षाें तक राजधानी रहा और लगभग 900-1000 के आसपास यहां से अपनी राजधानी पूर्व की ओर ‘गड़पंचकोट’ में स्थापित किया। गड़पंचकोट में इसका राजधानी लगभग 350 वर्षों तक रहा फिर वहां से मुगलों एवं मराठों के आक्रमण के बाद लगभग 1300 ई. के आसपास यहां से राजधानी केसरगढ़ में स्थापित किया। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर बहुत लंबे वषों तक राजधानी रहा लगभग 450-500 वर्ष तक। फिर यहां से 1750 के बाद इसकी राजधानी कांसीपुर में स्थापित किया, जो अंग्रेज एवं स्वतंत्रता काल तक रहा। इन जगहों से राजधानी स्थांतरण के बावजूद इसके वंशज के कुछ लोग वहीं रहने लगे। जिसका प्रमाण अभी भी झालदा राजघराना है।पंचकोट महाराजा के अधिन कई क्षेत्र के राजा थे जिसमें झरिया, कतरास, झालदा, चंदनकियारी आदि प्रमुख है। सीएचओ की भागीदारी से समुदाय में आयेगा बदलाव – डॉ॰ पुष्पा आईईसी और सीपीएचसी-आम कोषांग के सहयोग से एसबीसीसी और आईपीसी पर चैथे बैच का प्रशिक्षण शुरू। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मातृत्व स्वास्थ्य कोषांग प्रभारी डॉ पुष्पा ने कहा है कि मरीजों का पहला सम्पर्क कम्युनिटी हेल्थ आफिसर (सी-एच-ओ) से होता है, इसलिए स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रमों को जनता तक पहुचाने की जिम्मेदारी में उनका प्रमुख स्थान है। डॉ पुष्पा गुरूवार को नामकुम स्थित लोक स्वास्थ्य संस्थान में सीएचओ के लिए आयोजित दो दिवसीय आईईसी/बीसीसी प्रशिक्षण के चौथे बैच को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा की संस्थागत प्रसव, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व आश्वासन के बारे में आमजनों को जागरूक करें। उन्होंने परिवार नियोजन की विभिन्न स्थाई और अस्थाई विधियों के प्रयोग के बारे में आम जनों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने पर बल दिया। परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूषों की भागीदारी को बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा की संचार तकनीक का उपयोग कर क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है।आईईसी कोषांग प्रभारी डॉ लाल मांझी ने कहा कि संचार के माध्यम से हम स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम को आमजनों तक अच्छे से पहुंचा सकते हैं। सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब और एक्स हैन्डल के माध्यम से विश्वसनीय और प्रमाणित जानकारी हम लोगों तक पहुंचा सकते हैं। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि आयुष्मान आरोग्य मंदिर आने वाले मरीजों, ग्रामीणों और स्कूली बच्चों के बीच स्वच्छ आदत और स्वच्छता व्यवहार अपनाने के लिए भी जागरूक करें। यह प्रशिक्षण आईईसी और सीपीएचसी आयुष्मान आरोग मंदिर (आम) कोषांग के सहयोग से दिया जा रहा है, जिसमें तकनीकी सहयोग यूनिसेफ द्वारा प्रदान किया जा रहा है। माउथ कैंसर की रोकथाम के लिए वर्चुअल मोड में प्रशिक्षण शुरू “पद्मश्री डॉ गिरिधारी राम गौंझू स्मृति सम्मान 2024” से सम्मानित प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ‘गोतिया’ का टीआरएल संकाय में किया गया स्वागत व सम्मान, वक्ताओं ने कहा -यह सम्मान डॉ बीरेन्द्र महतो के कार्यों का आकलन है श्री मंगल टाइल्स एवं सेनेटरी के शोरूम का भव्य उद्घाटन, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री ने कहा -बेहतर क्वालिटी के लिए अब शहर जाने की आवश्यकता नहीं

डीएसपीएमयू कुड़मालि विभाग के छात्र-छात्राओं का दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण संपन्नशनिवार-रबिवार 27-28 जुलाई 2024 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) रांची पीजी तथा यूजी अंतिम वर्ष के छात्रों ने दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण प. बंगाल के पूरूलिया जिला के ऐतिहासिक पंचकोट महाराजा के झालदा, केसरगढ़, कांसीपुर एवं गड़पंचकोट स्थित राजमहल एवं किला का भ्रमण किया। भ्रमण की शुरूआत पंचकोट महाराजा के द्वितीय राजधानी झालदा से शुरूआत की गई। झालदा में स्थित महाराजा के राजदरबार का सभी छात्रों ने गहन अध्ययन किया, जो कि लगभग 1500 वर्ष पुराना माना जाता है।यहां से सभी छात्र-छात्राएं इसके केसरगढ़ स्थित राजधानी गये। वहां कई राजघराना के किलों के अवशेष का निरीक्षण किया, जो कि काफी विध्वंश स्थिति में देखने को मिला। इसके बावजूद यहां पर रानी बांध, इसके समाधि स्थल जहां पर पूजा-अर्चना अब भी होता है। राजा के शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्र होने के बात स्थानीय लोगों ने होने एवं 10 से अधिक बांध का नाम बतलाया, जिसमें ज्यादातर एक सीध में देखने को मिला।यहां से विद्यार्थी पंचकोट महाराजा के कांसीपुर स्थित राजधानी में स्थित राजबाड़ी का भ्रमण किया। इसके किला काफी अच्छी स्थिति में देखा गया। इस किला के एक भाग में इसके वंशज के एक सदस्य अभी निवास करते हैं। इसके किला के सबसे उपरी छोर में दिशा इंगित करने वाला है। जो कि धातु से बना हुआ है। मुख्य किला के आस-पास कई किला स्थित है जो कि ऊंची चारदिवारी में घिरी हुई है।यहां से विद्यार्थी पंचेत डेम के उस पार वेली पब्लिक स्कूल में रात्रि विश्राम किया। शैक्षणिक भ्रमण के दूसरे दिन 28 जुलाई को पंचेत डेम का भ्रमण किया। यह झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के सीमा पर दामोदर नदी पर बना है। डेम के विशालकाय दृश्य देखकर सभी विद्यार्थी दंग रह गये और डेम में सेल्पी लेकर इसको अपने मोबाईल में कैद कर लिये।फिर दोपहर तक पंचकोट महाराजा के तीसरा स्थातंरित राजधानी गड़पंचकोट गया जो कि पंचेत पहाड़ एवं इसके किनारे स्थित है। कहा जाता है कि यहां पांच चरणों में कोट स्थापित होने के कारण इसको पंचकोट कहा जाता है। यह पांचों चरण पहाड़ के ऊंचाई के अनुसार विभक्त किया गया है। इसका अवशेष आज भी है। इसका निरीक्षण छात्रों ने पहाड़ चढ़कर किया। यहां पांच कोटों का गढ़ रहने के इस कारण इस पाहाड़ का नामकरण पंचकोट पहाड़ पड़ा है एवं इस पूरे क्षेत्र को ‘गड़ पंचकोट’ नाम दिया गया।यहां पर कुड़मालि भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं समाज से जुड़े कई साक्ष्य शिल्प कला के रूप में प्राप्त हुआ। जैसे दासांइ पर्व में होने वाले ‘कोहड़ा’ पूजा का प्रतीक, नटुवा नृत्य में प्रयोग होने वाला ‘फरि’, जिलहुड़ का चिन्ह, गुप्त दिरखा (कनगा), बुढ़ा बाबा का स्थल आदि। इसके अलावे पूर्व द्वार, झरना, सैनिक के गुप्त स्थल, जोड़ा हाथी, राजहंस, महाबीर जैसा पत्थर का बना मूर्ति, राजकीय प्रतीक चिन्ह, सबसे शीर्ष स्थल पर महाराजा, मंत्री, सेनापति आदि के बैठने का सभा स्थल, सजा हेतु ढलान पत्थर आदि प्रमुख है। यहां राजमहल के शुरूआत में स्थित एक आदि माइथान का निरीक्षण किया, जिसका आधा से ज्यादा अंश विध्वंश हो चुका था। इसका स्थलीय क्षेत्र लगभग 1.5 किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। उपर्युक्त इन सभी जगहों पर सबों ने किला एवं अवशेषों के सामने सामूहिक फोटो खिंचवाया और रात्रि में वापस विश्वविद्यालय परिसर रांची पहुंचे।इस शैक्षणिक भ्रमण में यूजी और पीजी के कुल मिलाकर 54 छात्र-छात्राएं शामिल हुए। इनके साथ में कुड़मालि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परमेश्वरी प्रसाद महतो, सहायक प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो एवं पीएच. डी. शोधार्थी अशोक कुमार पुराण थे।ऐतिहासिक विश्लेषण के अनुसार पंचकोट राज्य के प्रथम राजधानी इस राढ़ भूमि स्थित गड़़ जयपुर (पुरूलिया) था जो कि 52 ई मानी जाती है। यहां पर कई सौ वर्ष राजधानी रहा फिर बाद में यहां से विस्तारित करते हुए झालदा मंे नया राजधानी स्थापित किया। यहां पर काफी लंबे वर्षाें तक राजधानी रहा और लगभग 900-1000 के आसपास यहां से अपनी राजधानी पूर्व की ओर ‘गड़पंचकोट’ में स्थापित किया। गड़पंचकोट में इसका राजधानी लगभग 350 वर्षों तक रहा फिर वहां से मुगलों एवं मराठों के आक्रमण के बाद लगभग 1300 ई. के आसपास यहां से राजधानी केसरगढ़ में स्थापित किया। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर बहुत लंबे वषों तक राजधानी रहा लगभग 450-500 वर्ष तक। फिर यहां से 1750 के बाद इसकी राजधानी कांसीपुर में स्थापित किया, जो अंग्रेज एवं स्वतंत्रता काल तक रहा। इन जगहों से राजधानी स्थांतरण के बावजूद इसके वंशज के कुछ लोग वहीं रहने लगे। जिसका प्रमाण अभी भी झालदा राजघराना है।पंचकोट महाराजा के अधिन कई क्षेत्र के राजा थे जिसमें झरिया, कतरास, झालदा, चंदनकियारी आदि प्रमुख है।

सीएचओ की भागीदारी से समुदाय में आयेगा बदलाव – डॉ॰ पुष्पा आईईसी और सीपीएचसी-आम कोषांग के सहयोग से एसबीसीसी और आईपीसी पर चैथे बैच का प्रशिक्षण शुरू। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मातृत्व स्वास्थ्य कोषांग प्रभारी डॉ पुष्पा ने कहा है कि मरीजों का पहला सम्पर्क कम्युनिटी हेल्थ आफिसर (सी-एच-ओ) से होता है, इसलिए स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रमों को जनता तक पहुचाने की जिम्मेदारी में उनका प्रमुख स्थान है। डॉ पुष्पा गुरूवार को नामकुम स्थित लोक स्वास्थ्य संस्थान में सीएचओ के लिए आयोजित दो दिवसीय आईईसी/बीसीसी प्रशिक्षण के चौथे बैच को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा की संस्थागत प्रसव, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व आश्वासन के बारे में आमजनों को जागरूक करें। उन्होंने परिवार नियोजन की विभिन्न स्थाई और अस्थाई विधियों के प्रयोग के बारे में आम जनों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने पर बल दिया। परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूषों की भागीदारी को बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा की संचार तकनीक का उपयोग कर क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है।आईईसी कोषांग प्रभारी डॉ लाल मांझी ने कहा कि संचार के माध्यम से हम स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम को आमजनों तक अच्छे से पहुंचा सकते हैं। सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब और एक्स हैन्डल के माध्यम से विश्वसनीय और प्रमाणित जानकारी हम लोगों तक पहुंचा सकते हैं। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि आयुष्मान आरोग्य मंदिर आने वाले मरीजों, ग्रामीणों और स्कूली बच्चों के बीच स्वच्छ आदत और स्वच्छता व्यवहार अपनाने के लिए भी जागरूक करें। यह प्रशिक्षण आईईसी और सीपीएचसी आयुष्मान आरोग मंदिर (आम) कोषांग के सहयोग से दिया जा रहा है, जिसमें तकनीकी सहयोग यूनिसेफ द्वारा प्रदान किया जा रहा है।

माउथ कैंसर की रोकथाम के लिए वर्चुअल मोड में प्रशिक्षण शुरू

o एनएचएम के नर्सिंग सेल, ईसीएचओ इंडिया और झारखण्ड नर्सेज रजिस्ट्रेशन काउंसिल के सहयोग से प्रारंभ किया गया है। o माउथ कैंसर की रोकथाम, पहचान और जागरूकता को बढ़ावा देने…

“पद्मश्री डॉ गिरिधारी राम गौंझू स्मृति सम्मान 2024” से सम्मानित प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ‘गोतिया’ का टीआरएल संकाय में किया गया स्वागत व सम्मान, वक्ताओं ने कहा -यह सम्मान डॉ बीरेन्द्र महतो के कार्यों का आकलन है

रांची : झारखंड साहित्य अकादमी संघर्ष समिति के तत्वावधान में पद्मश्री डॉ गिरिधारी राम गौंझू स्मृति सम्मान 2024 से जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के सहायक प्राध्यापक सह इंकलाबी नौजवान…

श्री मंगल टाइल्स एवं सेनेटरी के शोरूम का भव्य उद्घाटन, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री ने कहा -बेहतर क्वालिटी के लिए अब शहर जाने की आवश्यकता नहीं

रांची : पिठोरिया के मुरहर पहार के नजदीक टाइल्स एंड सेनेटरी शोरूम का भव्य शुभ उद्घाटन किया गया। इसका विधिवत उद्घाटन केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ ने फीता काटकर किया।…

मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने 1500 नवनियुक्त स्नातकोत्तर प्रशिक्षित शिक्षकों को सौंपा नियुक्ति पत्र, नौजवानों को अपने पैरों पर खड़ा करने का दोहराया संकल्प

शिक्षा की रोशनी से झारखंड की तस्वीर और तकदीर बदलने की मुख्यमंत्री ने जताई प्रतिबद्धता ◆ मुख्यमंत्री ने कहा- राज्य के गरीब बच्चों को मिलेगा क्वालिटी एजुकेशन , निजी विद्यालय…

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के समन्वयक डॉ हरि उरांव को दी गई विदाई

रांची विवि के जनजतीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय के वरीय प्राध्यापक सह समन्वयक डॉ हरि उरांव को  आज विदाई दी गई। श्री हरि उरांव 31 मार्च 2024 को सेवानिवृत हो…

डीएवी कपिलदेव पब्लिक स्कूल में अभिभावकों के लिए समन्वयन कार्यक्रम का आयोजन

डीएवी कपिलदेव पब्लिक स्कूल कडरू में आज नर्सरी ,एल के जी, यूकेजी,वर्ग एक तथा दो के अभिभावकों के लिए समन्वयन कार्यक्रम का आयोजन किया। सहायक क्षेत्रीय पदाधिकारी सह विद्यालय के…

टीआरएल संकाय के प्रीति व श्वेता ने पूरे रांची विश्वविद्यालय को किया गौरवान्वित, समन्वयक डॉ हरि उराँव ने कहा -प्रतिभा को तलाशने के लिए मंच की आवश्यकतारांची : दूरदर्शन के क्विज़ प्रतियोगिता “खुद को जाने, खुद को परखें” के तहत “भारत के स्वतंत्रता संग्राम में झारखंड की भूमिका” विषय पर केन्द्रित इस प्रतियोगिता में टीआरएल संकाय के नागपुरी विभाग के शानदार प्रदर्शन के बल पर शीर्ष स्थान पर रहने वाले सफल छात्राओं प्रीति मुण्डा और स्वेता कुमारी को सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह की अध्यक्षता टीआरएल संकाय के समन्वयक डॉ हरि उराँव ने की। संचालन प्राध्यापक डॉ रीझू नायक व धन्यवाद प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो ने किया। गौरतलब हो कि ये छात्र डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के एमएससी-आईटी, एमए राजनीति शास्त्र और आरडीकेएफ विश्वविद्यालय के एमबीए के छात्रों को पछाड़ कर 110 अंक अर्जित कर अव्वल रहें वहीं आईटी और एमबीए के छात्रों ने क्रमशः 65 और 10 अंक ही अर्जित कर सकें। संकाय के शिक्षकों ने सफल छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।डॉ हरि उराँव ने कहा कि टीआरएल संकाय के छात्रों ने जो सफलता हासिल की है उसका श्रेय हमारे संकाय के कर्मठ शिक्षकों एवं अभिभावकों को जाता है, जिन्होंने छात्रों को उचित मार्गदर्शन देकर प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि टीआरएल संकाय के छात्राओं ने यह साबित कर दिया कि हम किसी भी क्षेत्र में किसी से कम नहीं। छात्राओं ने टीआरएल संकाय के साथ साथ पूरे रांची विश्वविद्यालय को गौरवान्वित किया है। बेटियां किसी बेटे से कम नहीं। वे लगातार अपनी प्रतिभाओं का लोहा मनवा रही हैं।नागपुरी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सविता केशरी ने सफल छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि परिणाम की बगैर चिंता किए नियमित एवं योजनाबद्ध तरीके से अभ्यास करते रहना चाहिए। योजना बनाकर लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में किया गया हर प्रयास हमेशा सफल होता है।डॉ उमेश नन्द तिवारी ने कहा कि प्रोत्साहन से बच्चों में ऊर्जा का संचार होता है। यही ऊर्जा बच्चों को सफलता की ओर अग्रसर करता है। ऐसे प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए इस तरह का आयोजन जरूरी है।मारवाड़ी कालेज के टीआरएल के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ महेश्वर सारंगी ने सफल छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाता। जरूरत है इसे बनाए रखने की।मौके पर एस एस मेमोरियल कालेज के डॉ संजय सारंगी, डॉ बन्दे खलखो, शकुन्तला बेसरा, रवि कुमार, नेहा भगत, प्रवीण कुमार सिंह, सुखराम उराँव, श्रीकांत गोप, युवराज साहु, नमिता पूनम, सीमा कुमारी, जगदीश उरांव, प्रियंका उराँव सहित संकाय के शिक्षकगण, शोधार्थी एवं छात्राएँ उपस्थित थे।

You missed

डीएसपीएमयू कुड़मालि विभाग के छात्र-छात्राओं का दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण संपन्नशनिवार-रबिवार 27-28 जुलाई 2024 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) रांची पीजी तथा यूजी अंतिम वर्ष के छात्रों ने दो दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण प. बंगाल के पूरूलिया जिला के ऐतिहासिक पंचकोट महाराजा के झालदा, केसरगढ़, कांसीपुर एवं गड़पंचकोट स्थित राजमहल एवं किला का भ्रमण किया। भ्रमण की शुरूआत पंचकोट महाराजा के द्वितीय राजधानी झालदा से शुरूआत की गई। झालदा में स्थित महाराजा के राजदरबार का सभी छात्रों ने गहन अध्ययन किया, जो कि लगभग 1500 वर्ष पुराना माना जाता है।यहां से सभी छात्र-छात्राएं इसके केसरगढ़ स्थित राजधानी गये। वहां कई राजघराना के किलों के अवशेष का निरीक्षण किया, जो कि काफी विध्वंश स्थिति में देखने को मिला। इसके बावजूद यहां पर रानी बांध, इसके समाधि स्थल जहां पर पूजा-अर्चना अब भी होता है। राजा के शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्र होने के बात स्थानीय लोगों ने होने एवं 10 से अधिक बांध का नाम बतलाया, जिसमें ज्यादातर एक सीध में देखने को मिला।यहां से विद्यार्थी पंचकोट महाराजा के कांसीपुर स्थित राजधानी में स्थित राजबाड़ी का भ्रमण किया। इसके किला काफी अच्छी स्थिति में देखा गया। इस किला के एक भाग में इसके वंशज के एक सदस्य अभी निवास करते हैं। इसके किला के सबसे उपरी छोर में दिशा इंगित करने वाला है। जो कि धातु से बना हुआ है। मुख्य किला के आस-पास कई किला स्थित है जो कि ऊंची चारदिवारी में घिरी हुई है।यहां से विद्यार्थी पंचेत डेम के उस पार वेली पब्लिक स्कूल में रात्रि विश्राम किया। शैक्षणिक भ्रमण के दूसरे दिन 28 जुलाई को पंचेत डेम का भ्रमण किया। यह झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के सीमा पर दामोदर नदी पर बना है। डेम के विशालकाय दृश्य देखकर सभी विद्यार्थी दंग रह गये और डेम में सेल्पी लेकर इसको अपने मोबाईल में कैद कर लिये।फिर दोपहर तक पंचकोट महाराजा के तीसरा स्थातंरित राजधानी गड़पंचकोट गया जो कि पंचेत पहाड़ एवं इसके किनारे स्थित है। कहा जाता है कि यहां पांच चरणों में कोट स्थापित होने के कारण इसको पंचकोट कहा जाता है। यह पांचों चरण पहाड़ के ऊंचाई के अनुसार विभक्त किया गया है। इसका अवशेष आज भी है। इसका निरीक्षण छात्रों ने पहाड़ चढ़कर किया। यहां पांच कोटों का गढ़ रहने के इस कारण इस पाहाड़ का नामकरण पंचकोट पहाड़ पड़ा है एवं इस पूरे क्षेत्र को ‘गड़ पंचकोट’ नाम दिया गया।यहां पर कुड़मालि भाषा, साहित्य, संस्कृति एवं समाज से जुड़े कई साक्ष्य शिल्प कला के रूप में प्राप्त हुआ। जैसे दासांइ पर्व में होने वाले ‘कोहड़ा’ पूजा का प्रतीक, नटुवा नृत्य में प्रयोग होने वाला ‘फरि’, जिलहुड़ का चिन्ह, गुप्त दिरखा (कनगा), बुढ़ा बाबा का स्थल आदि। इसके अलावे पूर्व द्वार, झरना, सैनिक के गुप्त स्थल, जोड़ा हाथी, राजहंस, महाबीर जैसा पत्थर का बना मूर्ति, राजकीय प्रतीक चिन्ह, सबसे शीर्ष स्थल पर महाराजा, मंत्री, सेनापति आदि के बैठने का सभा स्थल, सजा हेतु ढलान पत्थर आदि प्रमुख है। यहां राजमहल के शुरूआत में स्थित एक आदि माइथान का निरीक्षण किया, जिसका आधा से ज्यादा अंश विध्वंश हो चुका था। इसका स्थलीय क्षेत्र लगभग 1.5 किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। उपर्युक्त इन सभी जगहों पर सबों ने किला एवं अवशेषों के सामने सामूहिक फोटो खिंचवाया और रात्रि में वापस विश्वविद्यालय परिसर रांची पहुंचे।इस शैक्षणिक भ्रमण में यूजी और पीजी के कुल मिलाकर 54 छात्र-छात्राएं शामिल हुए। इनके साथ में कुड़मालि विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. परमेश्वरी प्रसाद महतो, सहायक प्राध्यापक डॉ. निताई चंद्र महतो एवं पीएच. डी. शोधार्थी अशोक कुमार पुराण थे।ऐतिहासिक विश्लेषण के अनुसार पंचकोट राज्य के प्रथम राजधानी इस राढ़ भूमि स्थित गड़़ जयपुर (पुरूलिया) था जो कि 52 ई मानी जाती है। यहां पर कई सौ वर्ष राजधानी रहा फिर बाद में यहां से विस्तारित करते हुए झालदा मंे नया राजधानी स्थापित किया। यहां पर काफी लंबे वर्षाें तक राजधानी रहा और लगभग 900-1000 के आसपास यहां से अपनी राजधानी पूर्व की ओर ‘गड़पंचकोट’ में स्थापित किया। गड़पंचकोट में इसका राजधानी लगभग 350 वर्षों तक रहा फिर वहां से मुगलों एवं मराठों के आक्रमण के बाद लगभग 1300 ई. के आसपास यहां से राजधानी केसरगढ़ में स्थापित किया। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर बहुत लंबे वषों तक राजधानी रहा लगभग 450-500 वर्ष तक। फिर यहां से 1750 के बाद इसकी राजधानी कांसीपुर में स्थापित किया, जो अंग्रेज एवं स्वतंत्रता काल तक रहा। इन जगहों से राजधानी स्थांतरण के बावजूद इसके वंशज के कुछ लोग वहीं रहने लगे। जिसका प्रमाण अभी भी झालदा राजघराना है।पंचकोट महाराजा के अधिन कई क्षेत्र के राजा थे जिसमें झरिया, कतरास, झालदा, चंदनकियारी आदि प्रमुख है।

सीएचओ की भागीदारी से समुदाय में आयेगा बदलाव – डॉ॰ पुष्पा आईईसी और सीपीएचसी-आम कोषांग के सहयोग से एसबीसीसी और आईपीसी पर चैथे बैच का प्रशिक्षण शुरू। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मातृत्व स्वास्थ्य कोषांग प्रभारी डॉ पुष्पा ने कहा है कि मरीजों का पहला सम्पर्क कम्युनिटी हेल्थ आफिसर (सी-एच-ओ) से होता है, इसलिए स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रमों को जनता तक पहुचाने की जिम्मेदारी में उनका प्रमुख स्थान है। डॉ पुष्पा गुरूवार को नामकुम स्थित लोक स्वास्थ्य संस्थान में सीएचओ के लिए आयोजित दो दिवसीय आईईसी/बीसीसी प्रशिक्षण के चौथे बैच को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा की संस्थागत प्रसव, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व आश्वासन के बारे में आमजनों को जागरूक करें। उन्होंने परिवार नियोजन की विभिन्न स्थाई और अस्थाई विधियों के प्रयोग के बारे में आम जनों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करने पर बल दिया। परिवार नियोजन कार्यक्रम में पुरूषों की भागीदारी को बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा की संचार तकनीक का उपयोग कर क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है।आईईसी कोषांग प्रभारी डॉ लाल मांझी ने कहा कि संचार के माध्यम से हम स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम को आमजनों तक अच्छे से पहुंचा सकते हैं। सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब और एक्स हैन्डल के माध्यम से विश्वसनीय और प्रमाणित जानकारी हम लोगों तक पहुंचा सकते हैं। उन्होंने प्रशिक्षणार्थियों से कहा कि आयुष्मान आरोग्य मंदिर आने वाले मरीजों, ग्रामीणों और स्कूली बच्चों के बीच स्वच्छ आदत और स्वच्छता व्यवहार अपनाने के लिए भी जागरूक करें। यह प्रशिक्षण आईईसी और सीपीएचसी आयुष्मान आरोग मंदिर (आम) कोषांग के सहयोग से दिया जा रहा है, जिसमें तकनीकी सहयोग यूनिसेफ द्वारा प्रदान किया जा रहा है।